Friday 10 May 2013

तालिमी माहौल

तालिमी माहौल
अज़ब ये तालीम की सबा हई, खलल है अजब
तालिब बन रहे उस्ताद, उस्ताद हो रहे तलब
न मुर्शीद हैं संजीदा, ना शागिर्दों में है अदब
न इन्हें कुछ ख्याल, न वो जाने इलम का सबब
फर्ज हो रहा फ़ना माफिया-ए-नकल हो रहा जवां,
नाकाबिल पा रहे एज़ाज़, अदीब हो रहे परेशां
दौड़ती हैं यहां बैसाखियां, पाते हैं ऊंचाई-ए-आसमां
पिछड़ते हैंं मेहनतकश हाथ, गिरते हैं काबिल जवां
कुछ सियासी हैं मेहरबानियां, कुछ वालेदेन की है गफ़लत
कुछ उस्ताद हो गए गाफिल, कुछ शागिर्दो में नहीं हसरत
मशवरे आलाओं के नहीं सादिक, ईरादों में भी नहीं दम
सियासी चालें चल रहे सब, उस्ताद रह गए कम
तालीम से होते जा रहे दूर जुर्म के आ रहे और करीब
कैसा है ये तालीमी माहौल कैसा तालिबों का नसीब
देखो ! वो डूबती है कश्ती तालीम की, संभालो या रब !
वो गर्क होता है मुस्तकबिल वतन का संभालो या रब !
छोड ! तू ही फ़िक्र क्यों करता है ’बाली’ जहां की,
क्यों लेता है दर्द जमाने का
डूबती है तो डूबने दे
गर फ़िक्र न मल्लाह को है न मुसाफ़िर को डूबने का
                                                                    -------जगदीश बाली

Wednesday 1 May 2013

या रब ! इन्सानों को किसी मुफ़लिस का जिगर दे !

गुज़िश्ता चंद रोज किसी रिश्तेदार की शादी में शरीक होने जाना हुआ ! एक रात गुज़ारने के वास्ते किसी के घर जाना हुआ ! उस शक्स का तारीक सा मकान था, परिवार खासा बडा है, बामुशिक्ल गुज़ारा होता होगा ! जब सवेरे चलने को हुए तो उस शक्स की बिवी ने मेरी बेगम के बडे से बेग में एक पोटली डाल दी ! हम जिस गाडी में सफ़र कर रहे थे, उस घर की बूढी दादी हमारे साथ हमें छोडने आयी ! जरा सा सफ़र तय करने के बाद दादी मां ने कहा : थोडा रुको, मैं अभी आती हूं !" कुछ मिन्टों बाद वो आयी, हाथ में पतली-२ लकडियों का एक छोटा सा गट्ठा भी था और कहने लगी : " बेटा ये गिलोई है, कई बिमारियों से निज़ात दिलाएगी !" फ़िर हमें खुदाहाफ़िज़ कह कर वो अपने घर लौट गयी ! सफ़र में सोचता रहा पोटली में क्या होगा ! घर पहूंचे, बैग कंधे से उतारा और पोटली टटोली ! राजमहा की दाल थी, दो-तीन वक्त का जुगाड ज़रूर था ! साथ मुट्टीभर अनार दाना और २-३ किलो टमाटर भी डाल रखे थे ! मैं चुप चाप अपने आपको देख रहा था और आंखों से अश्क रवां थे ! हम सब कुछ होते हुए भी वो चीज़ देते हैं जिन्हें हम फ़ालतू कहते हैं और इस मुफ़लिसी में भी वो वो चीज़ दे गया जिसके लिए उसने ताउम्र जदोजहद की है ! हम किसी को कपडा भी तब देने की सोचते हैं जब वो हमारे पहनने के काबिल नहीं रहता ! अमूनन अदीब लोग जिन्दगी में जमा-वाहिद, फ़यदा नुकसान की बहुत सोचते हैं लेकिन गरीब की ज़िन्दगी में मोहब्बत और दिल का मकाम बहुत ऊंचा होता है ! वो सीधा जीना जनते हैं और जहां तक शायद अमीर लोगों के दिल का रास्ता नहीं जाता ! सामान तो हम दुकान से खरीद सकते हैं पर मोहब्ब्त और परोपकार तिजारत नहीं जो दुकानों में मिल जाए ! उस राजमहा की दाल में जो प्रेम का स्वाद है वो खरीदी दाल में कहां क्योंकि वो तो तोल-मोल कर ली गयी है ! उस गिलोई में जो दवा है उसका सानी किसी हकीम के पास कहां ! मेरी नम आंखें शायद उस गरीब इन्सान का एहसान न चुका सके पर मैं ये दुआ जरूर करता हूं- या अल्लाह ! इन्सानों को किसी मुफ़लिस का जिगर दे क्योंकि वहां तेरा ठिकाना है !